नव भारत का निर्माण
राष्ट्रप्रेम के भाव बिना, यह काया है किस काम की।
नव भारत का निर्माण करो, ये मांग है हिंदुस्तान की ।।
सदियों से भारतवासी को,यह पाठ पढ़ाया जाता है।
अपनी छोड़ो,जग की सोचो,शपथ विश्वकल्याण की।।
लेकिन-
कब तक इस जग की सोचोगे,भारत के बारे में सोचो।
विश्वास भरे बस कर्म करो,छूलो ऊंचाई आसमान की।।
नव भारत का निर्माण करो,ये मांग है हिंदुस्तान की ।।
स्वतंत्र हुए, गणतंत्र बने, मुक्ति मिली अपमान से।
सर्वाधिकार संपन्न हुए ,यह शक्ति है संविधान की।।
असीमित उर्जा, बुद्धि अपार,दोनों का उपयोग करो।
पुनः प्रतिष्ठित हो भारत ,रक्षा हो स्वाभिमान की।।
नव भारत का निर्माण करो,ये मांग है हिंदुस्तान की ।।
अंतिम चेतावनी
कोरोना नहीं
चेतावनी है
यह –
विकराल मानव भविष्य की ।
परिणति है
यह –
मानव के
निरंतर कुकृत्य की।।
अहंकारवश मानव ने
प्रकृति को
दास बनाना चाहा था ।
प्रकृति की
सौगातों को
बलात् हथियाना चाहा था।।
प्रकृति कोप की
यह –
छोटी सी इक आहट है।
देखो -हतप्रभ निराश मानव की
यह-
कैसी छटपटाहट है।।
ज्ञान- विज्ञान हुए सब असफल
कुछ भी
काम ना आया है ।
संभवतः प्रकृति ने
मानव को
अंतिम बार चेताया है।।
अंतिम बार चेताया है।
एहसास
हजारों कोस दूर तुम परदेस में हो ,
फिर भी तुम्हें अपने नजदीक पाता हूँ ।
तीनों वक्त अपने साथ ,तुम्हारे लिए भी
दस्तरख़्वान बिछाता हूँ। ।
देखता हूँ तुम्हारे खिलौने जब भी
तुम्हें वो ही नन्हा सा बच्चा
खुद को जवान पिता पाता हूँ।
तुम्हारे होने का यही एहसास
जीने की वजह है वरना
जीने का कोई ओर सबब कहाँ पाता हूँ
जीने का कोई ओर सबब कहाँ पाता हूँ।।
ओम गोपाल शर्मा, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
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