मेरी प्यारी मेरी दुलारी नन्ही सी कली
रोज देर तक मुझे जगाती नन्ही सी कली
हंसती है तो खनखन जैसी आवाजें आती हैं
पढ़ती है तो ऐसा लगता मां सरस्वती आती हैं
करके शैतानी वह मुझको रोज हंसाती है
लोटपोट हो जाता जब वह कुछ बन के आती है
नन्हा बैग लाद पीठ पर जाती वह स्कूल
ना अच्छा लगता घर में हम हो जाते हैं कूल
आती जब स्कूल से लौट के उजियारा फैलाती
हम लोगों के सांसो में तब सांस लौट के आती
मां उसकी पगला के उसको चूम चाटने लगती
चारों ओर हवा प्यार की देखो बहने लगती
आते ही मुझको डैडी कहकर वह मुझे बुलाती है
लंबी एक छलांग लगाकर गोदी में चढ़ जाती है
चुम्मी की वो झड़ी लगाकर मुझको खूब हंसाती है
यह सब उसका देख पड़ोसन अपने घर को जाती है
अपने बच्चे को गुढ़िया की सारी कथा बताती है
एक रात जब मैं सोया था उसने खींची नाक
अगली सुबह जागते ही वह लगी रगड़ने चाक
हंस-हंसकर मैं पागल हो गया देखी जब शैतानी
पकड़ा उसको लगा डांटने आ गई उसकी नानी
झट गोदी में लेकर उसको लगी पिलाने पानी
मैं मन में तब लगा सोचने यह तो सब में ढली है
मेरी प्यारी मेरी दुलारी नन्ही सी कली है
लेखक- राज कुमार गौतम, उत्तर प्रदेश
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