भादों की रात थी। अंधेरा इतना घना था कि पास की चीज भी साफ नहीं दिखाई दे रही थी। चारों तरफ पहरेदार लगे हुए थे पहरेदारों के हाथों में भाला एवं तलवार लेकर जेल का पहरा लगा रहे थे। कहीं भी कोई आवाज नहीं आ रही थी। बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था जैसे ही रात के 12:00 बजे अचानक देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म देते ही देवकी उसके चेहरे को देखकर रोने लगी। क्योंकि वह जानती थी कि उसका दुष्ट भाई उस बच्चे को अगले दिन मार देगा।
अचानक से आसमान में और भी घने बादल छा गए। अंधेरा इतना घना हो गया जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। वसुदेव ने इधर उधर देखा तो जितने भी पहरेदार पहरा कर रहे थे सभी सो चुके थे। जेल में लगा हुआ लगभग 5 किलोग्राम का ताला अचानक से खुल गया था। वसुदेव इससे पहले कुछ सोचते। उन्हें भविष्यवाणी हुई और उस भविष्यवाणी में उन्हें आदेश दिया गया इस बालक को ले जाकर गोकुल में नंद बाबा के यहां छोड़ा आओ।
वसुदेव ने इधर-उधर देखा तो उन्हें एक टोकरी दिखाई दी। वसुदेव ने झट से टोकरी को उठाया और उसमें कुछ कपड़े रखें। उसके बाद उस बालक को टोकरी में लिटा लिया। टोकरी में बालक को लिटाने के बाद वसुदेव ने टोकरी को सिर पर रखा और गोकुल के लिए चल दिए। उनका रास्ता रोकने वाला कोई नहीं था। बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। वसुदेव लगातार चले जा रहे थे।
जब वसुदेव यमुना के किनारे पहुंचे तो यमुना जी मैं इतना पानी बढ़ा हुआ था की उसे पार करना असंभव सा लग रहा था, लेकिन वसुदेव ने उस बच्चे को बचाने के लिए यमुना जी में पैर रख दिया। जैसे ही वसुदेव ने यमुना जी में आगे बढ़े पानी गहरा होता चला गया। एक समय ऐसा आया की वसुदेव पूरी तरह से यमुना में समाने वाले ही थे, तभी उस बालक के पैर यमुना के पानी में लगे। यमुना के पानी में पैर लगते ही अचानक यमुना का पानी कम हो गया। लेकिन घनघोर रूप से बारिश होने लगी। बालक सिर के ऊपर था। इसलिए वसुदेव चिंतित हो गए लेकिन तभी उन्होंने देखा पीछे से शेषनाग ने आकर के उस बालक के ऊपर अपने फनों की छतरी बना दी। बासुदेव आराम से यमुना जी पार कर गए।
इसके बाद वह सीधे नंद बाबा के यहां गए। वहां भी पूरी तरह से सन्नाटा छाया हुआ था। उसी दिन मैया यशोदा को एक पुत्री पैदा हुई थी। वसुदेव ने उस पुत्री को देखा तो उस जगह पर उस बालक को लिटा दिया और उस पुत्री को लेकर के मथुरा आ गए।
जब सुबह हुई और कंस को पता चला कि देवकी ने किसी बच्चे को जन्म दिया है। तो बिना देर किए ही वह दौड़ता हुआ कारागार पहुंचा। जब उसने वहां जाकर देखा तो वह तो एक लड़की थी। कंस अपनी मौत से इतना ज्यादा भयभीत था कि उसने उस लड़की को देवकी के हाथों से छीन लिया। उसने पास में ही पड़े पत्थर पर उस लड़की को पटकना चाहा। इतने में वह कन्या उसके हाथ से छूट गई और आसमान में चली गई। आसमान में जाकर उस कन्या ने भविष्यवाणी की, कि हे दुष्ट कंस ? तुझे मारने वाला इस जग में पैदा हो चुका है। इतना कहने के बाद वह कन्या गायब हो गई।
कंस पूरी तरह से विचलित हो गया। उसने वसुदेव और देवकी को कई प्रकार से प्रताड़नाएं दीं, किंतु वसुदेव और देवकी ने अपना मुंह नहीं खोला। इसके बाद कंस ने आदेश कर दिया कि आज मेरे राज्य में जितने भी बच्चों ने जन्म लिया है उन्हें तत्काल खत्म कर दिया जाए। कंस के सैनिकों ने पूरे राज्य के बच्चों को खत्म कर दिया। जब यशोदा के यहां पहुंचे तो वहां जन्मे बालक को लाख कोशिश करने के बाद भी नहीं मार सके। वह कोई आम बालक नहीं था। वह स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे। इसके बाद कंस ने अपने बहुत से राक्षस और राक्षसनियों को भेजा। लेकिन सभी कृष्ण के द्वारा मारे गए। इसके बाद जैसे-जैसे भगवान कृष्ण बड़े होते रहे अपने लीलाएं सभी को दिखाते रहें।
अंत में भगवान कृष्ण मथुरा में आकर कंस का वध किया और मथुरा को उस राक्षस कंस से मुक्ति दिलाई। इसके बाद भगवान कृष्ण ने राधा से प्रेम किया और रुक्मणी से शादी की। बाद में महाभारत में हिस्सा लेकर के पांडवों की विजय कराई। अंतिम समय एक बहेलिया के तीर लगने के कारण भगवान कृष्ण अपने शरीर को त्याग दिया और स्वर्ग को चले गए।
अंजुल गौतम, हजारीबाग, झारखंड
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