जिंदगी का सफर इतना आसान नहीं होता जीवन में कभी खुशियां तो कभी दुखों का आना-जाना लगातार बना रहता है। कभी-कभी जिंदगी को इतना संघर्षशील होना पड़ता है कि अंदर से इंसान पूरी तरह टूट जाता है लेकिन यहीं से जो अपना सफर शुरू करता है। वह जिंदगी में सफल हो जाता है। आज मैं एक ऐसी ही प्रसिद्ध कवित्री, उपन्यासकार और निबंधकार के बारे में बताने जा रहा हूं जिनका जन्म आज के ही दिन हुआ था। उनका नाम अमृता प्रीतम है।
अमृता प्रीतम जी का जन्म 31 अगस्त सन 1919 के दिन पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था। अमृता जी को पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवित्री भी माना जाता है। उनमें कुशलता और ज्ञान का भंडार होने के कारण उन्होंने किशोरावस्था से ही पंजाबी भाषा में अपनी कविताओं को लिखना शुरू कर दिया था। इतना ही नहीं निबंध और कहानियां भी उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखनी शुरू कर दी थी।
अमृता जी एक ऐसी कवित्री हैं जिनका नाम प्रमुख साहित्यकारों में से एक है। इनका संकलन सिर्फ 16 साल की उम्र में ही प्रकाशित हो गया था। इनकी 50 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित की जा चुकी हैं। इनकी सिर्फ पंजाबी में ही नहीं अनेक भाषाओं में रचनाएं उपलब्ध हैं। पुरस्कार के क्षेत्र में इन्होंने पुरस्कारों की झड़ी लगा दी। 1957 में अमृता जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत की गई। 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार से सम्मानित की गई जो एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार है।
1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित की गई। अमृता जी को पंजाबी कविता “अज्ज आखां वारिस शाह नूं “के लिए सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुए भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है। यह कविता भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में खूब सराही गई।
अमृता प्रीतम की प्रमुख रचनाएँ
चर्चित कृतियाँ
उपन्यास
पांच बरस लंबी सड़क, पिंजर, अदालत, कोरे कागज़, उन्चास दिन, सागर और सीपियां
आत्मकथा
रसीदी टिकट
कहानी संग्रह
कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं, कहानियों के आँगन में
संस्मरण
कच्चा आंगन, एक थी सारा
उपन्यास
डॉक्टर देव (1949)- (हिन्दी, गुजराती, मलयालम और अंग्रेज़ी में अनूदित),
पिंजर (1950) – (हिन्दी, उर्दू, गुजराती, मलयालम, मराठी, अंग्रेज़ी और सर्बोकरोट में अनूदित),
आह्लणा (1952) (हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में अनूदित),
आशू (1948) – हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
इक सिनोही (1949) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
बुलावा (1960) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
बंद दरवाज़ा (1961) हिन्दी, कन्नड़, सिंधी, मराठी और उर्दू में अनूदित,
रंग दा पत्ता (1963) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
इक सी अनीता (1964) हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू में अनूदित,
चक्क नम्बर छत्ती (1964) हिन्दी, अंग्रेजी, सिंधी और उर्दू में अनूदित,
धरती सागर ते सीपियाँ (1965) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
दिल्ली दियाँ गलियाँ (1968) हिन्दी में अनूदित,
एकते एरियल (1969) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
जलावतन (1970)- हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
यात्री (1971) हिन्दी, कन्नड़, अंग्रेज़ी बांग्ला और सर्बोकरोट में अनूदित,
जेबकतरे (1971), हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, मलयालम और कन्नड़ में अनूदित,
अग दा बूटा (1972) हिन्दी, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनूदित
पक्की हवेली (1972) हिन्दी में अनूदित,
अग दी लकीर (1974) हिन्दी में अनूदित,
कच्ची सड़क (1975) हिन्दी में अनूदित,
कोई नहीं जानदाँ (1975) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
उनहाँ दी कहानी (1976) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
इह सच है (1977) हिन्दी, बुल्गारियन और अंग्रेज़ी में अनूदित,
दूसरी मंज़िल (1977) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
तेहरवाँ सूरज (1978) हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में अनूदित,
उनींजा दिन (1979) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
कोरे कागज़ (1982) हिन्दी में अनूदित,
हरदत्त दा ज़िंदगीनामा (1982) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित
आत्मकथा:
रसीदी टिकट (1976)
कहानी संग्रह:
हीरे दी कनी, लातियाँ दी छोकरी, पंज वरा लंबी सड़क, इक शहर दी मौत, तीसरी औरत सभी हिन्दी में अनूदित
कविता संग्रह:
लोक पीड़ (1944), मैं जमा तू (1977), लामियाँ वतन, कस्तूरी, सुनहुड़े (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह तथा कागज़ ते कैनवस ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह सहित 18 कविता संग्रह।
गद्य कृतियाँ
किरमिची लकीरें, काला गुलाब,
अग दियाँ लकीराँ (1969),
इकी पत्तियाँ दा गुलाब, सफ़रनामा (1973),
औरतः इक दृष्टिकोण (1975), इक उदास किताब (1976),
अपने-अपने चार वरे (1978), केड़ी ज़िंदगी केड़ा साहित्य (1979),
कच्चे अखर (1979), इक हथ मेहन्दी इक हथ छल्ला (1980),
मुहब्बतनामा (1980), मेरे काल मुकट समकाली (1980),
शौक़ सुरेही (1981), कड़ी धुप्प दा सफ़र (1982),
अज्ज दे काफ़िर (1982) सभी हिन्दी में अनूदित।
अमृता प्रीतम की मशहूर कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ ‘वारिस शाह से’
आज वारिस शाह से कहती हूं –
अपनी क़ब्र में से बोलो!
और इश्क़ की किताब का
कोई नया वर्क़ खोलो!
पंजाब की एक बेटी रोयी थी,
तूने एक लम्बी दास्तान लिखी,
आज लाखों बेटियां रो रही हैं
वारिस शाह! तुम से कह रही हैं:
ऐ दर्दमन्दों के दोस्त,
पंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा है,
चनाब लहू से भर गया है…
किसी ने पांचों दरियाओं में
एक ज़हर मिला दिया है
और यही पानी
धरती को सींचने लगा है
इस ज़रखेज़ धरती से
ज़हर फूट निकला है
देखो, सुर्खी कहां तक आ पहुंची!
और क़हर कहां तक आ पहुंचा!
फिर ज़हरीली हवा
वन-जंगलों में चलने लगी
उसमें हर बांस की बांसुरी
जैसे एक नाग बना दी…
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
और डंक बढ़ते चले गये
और देखते-देखते पंजाब के
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
हर गले से गीत टूट गया,
हर चरखे का धागा छूट गया
सहेलियां एक-दूसरे से बिछुड़ गयीं,
चरखों की महफ़िल वीरान हो गयी
मल्लाहों ने सारी किश्तियां
सेज के साथ ही बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें
टहनियों के साथ तोड़ दीं
जहां प्यार के नग़में गूंजते थे
वह बांसुरी जाने कहां खो गयी
और रांझे के सब भाई
बांसुरी बजाना भूल गये…
धरती पर लहू बरसा,
क़ब्रें टपकने लगीं
और प्रीत की शहज़ादियां
मज़ारों में रोने लगीं…
आज सभी ‘कैदो’ बन गये –
हुस्न और इश्क़ के चोर
मैं कहां से ढ़ूंढ़ कर लाऊं
एक वारिस शाह और
वारिस शाह! मैं तुमसे कहती हूं
अपनी क़ब्र से बोलो
और इश्क़ की किताब का
कई नया वर्क़ खोलो!
संगीता शर्मा, अमृतसर, पंजाब
लेखिका और गृहणी
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